Gulzar Poetry :
41. ज़ुबान पर ज़ायका आता था जो सफ़हे पलटने का
ज़ुबान पर ज़ाएका आता था जो सफ़हे पलटने का
अब उँगली ‘क्लिक’ करने से बस इक
झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
किताबों से जो जाती राब्ता था, कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
विद्यालय की प्राथना याद दिला दी।