Gulzar Poetry

Gulzar Poetry :

36. एक में दो

एक शरीर में कितने दो हैं,
गिन कर देखो जितने दो हैं।

देखने वाली आँखें दो हैं,
उनके ऊपर भवें भी दो हैं,
सूँघते हैं ख़ुश्बू को जिससे
नाक एक है, नथुने दो हैं।

भाषाएँ हैं सैकड़ों लेकिन,
बोलने वाले होंठ तो दो हैं,
लाखों आवाज़ें सुनते हैं,
सुनने वाले कान तो दो हैं।

कान भी दो, होंठ भी दो हैं,
दाएँ, बाएँ, कन्धे दो हैं,
दो बाहें, दो कोहनियाँ उनकी,
हाथ भी दो, अँगूठे दो हैं।

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