Gulzar Poetry

Gulzar Poetry :

26. स्पर्श

कुरान हाथों में लेके नाबीना एक नमाज़ी
लबों पे रखता था
दोनों आँखों से चूमता था
झुकाके पेशानी यूँ अक़ीदत से छू रहा था
जो आयतें पढ़ नहीं सका
उन के लम्स महसूस कर रहा हो

मैं हैराँ-हैराँ गुज़र गया था
मैं हैराँ हैराँ ठहर गया हूँ

तुम्हारे हाथों को चूम कर
छू के अपनी आँखों से आज मैं ने
जो आयतें पढ़ नहीं सका
उन के लम्स महसूस कर लिये हैं

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