Gulzar ki Lines :
बेशक ख्वाहिश चाँद की रखो ,
मगर क़ुबूल उसका दाग़ भी करो ||
चलो इश्क़ को इश्क़ से मिलाते हैं ,
उन्हें हम एक शाम चाय पर बुलाते हैं ||
कुछ रिश्ते ऐसे भी निभाए जाते हैं ,
एक दिन मिलने के लिए महीनों इंतज़ार में बिताये जाते हैं ||
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ना चाहते हुए भी छोड़ना पड़ता है साथ ,
कुछ मजबूरियां मोहब्बत से भी ज्यादा गहरी होती है ||
छोडो न यार क्या रखा है ,
सुनने और सुनाने में किसी ने कसार नहीं छोड़ी दिल दुखने में ||
कुछ बातों से अनजान रहना ही अच्छा है ,
कभी कभी सब कुछ जान लेना भी बहुत तकलीफ देता हैं ||
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उसकी मोहब्बत को कुछ इस तरह से निभाते है ,
हाँ वो नहीं है तक़दीर में फिर भी उसे बेपनाह चाहते है हम ||
मतलब न हो तो लोग बोलना तो दूर ,
देखना भी छोड़ देते हैं ||
फासले तो बढ़ा रहे हो मगर याद रखना
कि मोहब्बत बार बार इन्शान पर मेहरबान नहीं होती ||
हिसाब बराबर का हुआ चलो कोई गम नहीं ,
तुम्हारे पास हम नहीं हमारे पास तुम नहीं ||
सरकारी नौकरी से ही विवाह करना था
तो तुम पहले ही बता देते हम प्रेम नहीं तैयारी करते ||
पूरा हक़ है तेरा मुझ पर तू सब जताया कर ,
मैं ना पूछूं फ़िर भी मुझे सब बताया कर ||
मोहब्बत दिल में कुछ ऐसी होनी चाहिए
कि वो हांसिल भले दूसरों को हो
लेकिन हमारी कमी उसको ज़िन्दगी भर होनी चाहिए ||
कहाँ से लाऊँ मैं इतना सब्र ,
थोड़े से मिल क्यों नहीं जाते तुम ||
मेरी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ शुरू तो हो नहीं हुए ,
मगर ख्वाहिश है कि ख़त्म तेरे साथ ही हो ||
अगर तुम्हें प्यार में मेरी साडी सच बातें झूठी लगती थी
तो प्यार था ही कहाँ ||
कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुमने किसे चाहा और कितना चाहा ,
हमें तो ये पता है कि हमने सिर्फ तुम्हे चाहा और बेपनाह चाहा ||
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अकेले रहने का भी अपना ही सुकून है ,
ना किसी के आने की ख़ुशी और ना किसी के जाने का ग़म ||
ज़िद पर आ जाऊं तो पलट कर भी न देखूं ,
मेरे सब्र से अभी तुंम वाकिफ़ ही कहाँ हो ||
उस रिश्ते को भी निभाया है हमने ,
जिसमें ना मिलना पहली शर्त थी ||
Bahut hi khubsurt panktiya ….👌👌