Gulzar Poetry

Gulzar Poetry :

31. लैंडस्केप-2

कोई मेला लगा है परबत पर
सब्ज़ाज़ारों पर चढ़ रहे हैं लोग
टोलियाँ कुछ रुकी हुईं ढलानों पर
दाग़ लगते हैं इक पके फल पर
दूर सीवन उधेड़ती-चढ़ती,
एक पगडंडी बढ़ रही है सब्ज़े पर!

चूंटियाँ लग गई हैं इस पहाड़ी को
जैसे अमरूद सड़ रहा है कोई!

Spread the love

1 thought on “Gulzar Poetry”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *