KHOON KA PANI (खून का पानी)

अजी काहे को बवाल मचा रखा है। बेचारे नेताजी ने क्या गलती की उन्होंने खून (Khoon) ही तो निकलवाया है। वैसे भी अपने इस महान लोकतंत्र का कसीदा पढते हुए हम एक बात मजे-मजे में कह सकते हैं- उनका (नेताओं) खून खून(Khoon Khoon) है; और हमारा खून(Khoon) है पानी(Pani)! नेताजी जानते हैं कि वे जितना खून(Khoon) आला कमान तक पहुंचाएंगे उनकी गोटी उतनी ही आगे बढेगी। अपने जनतंत्र की खूबी यही है कि यहां जनता को अपना खून(Khoon) पानी (Pani)करना पडता है। आम आदमी की तो तकदीर ही यही है। उसे खटना है। उसे मरना है। उसे जूझना है। उसे परेशान होना है। उसके खटने और जूझने पर नेता मजे करते हैं। दिलचस्प बात यह कि इनसे कोई पूछने वाला नहीं।

Khoon Pani

Pic Credit : PxFuel

एक जमाने में एक जुमला बडा प्रसिद्ध हुआ था- हर गलती अपना हिसाब मांगती है, लेकिन अब नेता हों या अफसर गलती पर गलती किए जा रहे हैं, पर कहीं कोई हिसाब नहीं। हिसाब तो जनता को देना पडता है। हर चीज का हिसाब! बातों का हिसाब! वोटों का हिसाब। यहां तक कि सांसों का हिसाब। सरकार जनता से एक-एक निवाले का हिसाब कर लेती है। पक्ष के नेता अपने आला नेताओं के जन्मदिन पर खून यज्ञ में यह तक भी नहीं देखते कि किसका खून(Khoon) लिया जा रहा है।

विपक्ष के नेताओं को अपने झंझटों से ही फुरसत नहीं। चलो यहां जो खून(Khoon) निकाला गया वह  अस्पताल में रोगियों के ही काम आएगा, पर उन खून के सौदागरों का क्या करें, जिन्होंने जानवरों का खून आदमी को बेच दिया। उन बेचारों को दोष देना भी बेकार है। उन्होंने वही किया जो अपना समाज दर्शा रहा है। जरा आदमी के कृत्य तो देखिए।

अपने लाभ के खातिर वह वहशी बन रहा है। बगैर इस बात की चिन्ता किए कि उसके कारनामों का क्या असर पडेगा। एक बात जरूर कहना चाहेंगे। आज का आदमी तो जानवर का खून(Khoon) पचा लेगा, लेकिन गलती से आदमी का खून(Khoon) किसी जानवर को नहीं चढना चाहिए। अगर जानवरों में आदमी के खून(Khoon) के साथ उसकी आदत पहुंच गई तो फिर इस पृथ्वी को लेने के देने पड जाएंगे। अपने हिए पर हाथ रख कर सोचिएगा! क्या सचमुच हमने आदमी के बारे में सोचा है अगर सोचते तो ये हालात पैदा नहीं होते। अपने समाज में भोली बूढी औरतों को ठगने के लिए आस्ट्रेलिया वाले नहीं आ रहे।

अपने घर से मंदिर जा रही मां-बहनों की जंजीर तोडने के लिए पाकिस्तान अपने लडकों को नहीं भेज रहा। बाग में अपने मित्र के साथ घूम रही युवती से बलात्कार करने के लिए ब्रिटिश कम्पनी के लोग नहीं आ रहे। गधे की लीद तो धनिए में मिलाने वाले अमरीकन नहीं हैं। लेकिन हमने इन बातों पर तो सोचना ही बंद कर दिया है। क्यों सोचें सोचते ही माथा भन्नाने लगता है। आजादी के बाद जिस देश के नेताओं के पास विचार करने को जिन्ना साहब बचे हैं, जहां दाल-चीनी के आसमान चढते भावों को नेतागण सहजता से लेते हों उस देश का क्या कहना। आपके पास कोई हल हो तो बताइए। सोचते-सोचते हमारा तो खून(Khoon) पानी(Pani) होता जा रहा है।

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3 thoughts on “KHOON KA PANI (खून का पानी)”

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