औरत मोहताज नही किसी गुलाब की…
वो खुद बाग़बान है इस कायनात की!
खुदा ने पूछा… क्या सजा दूँ तेरे प्यार को…
दिल से आवाज़ आई…
मुझसे मोहब्बत हो जाये मेरे यार को!
लिखूँ क्या नज्म कोई तुझ पर गजल का खुद तू लिबास है…
मुकम्मल ईश्क में ड़ूबे हुए शायर का तू लब्ज खास है!
मज़ाक मे माँग बैठा था कोई मुझसे खाक जन्नत की…
माँ के कदमों से ले जाकर मिट्टी पूरी उसकी मन्नत की!
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