किस हद तक जाना है ये कौन जानता है…
किस मंजिल को पाना है ये कौन जानता है…
दोस्ती के दो पल जी भर के जी लो…
किस रोज बिछड़ जाना है ये कौन जानता है…
दोस्ती से बड़ी कोई जागीर नहीं होती…
इससे अच्छी कोई तस्वीर नहीं होती…
एक प्यार का नाजुक सा धागा है दोस्ती…
फिर भी इससे पक्की कोई जंजीर नहीं होती…
आँखें जो पढ़ ले उसी को दोस्त मानना जनाब…
वरना… चेहरा तो रोज दुशमन भी देखते हैं…
वक्त के पन्ने पलटकर देख ऐ जिंदगी…
फिर वो हसीन लम्हें जीने को दिल चाहता है…
कभी मुस्कुराते थे सभी दोस्त मिलकर…
अब उन्हें साथ देखने को दिल तरस जाता है…
साथ दो हमारा जीना हम सिखायेंगे…
मंजिल तुम पाओ रास्ता हम बनायेंगे…
खुश तुम रहो खुशियाँ हम दिलायेंगे…
तुम बस दोस्त बने रहो दोस्ती हम निभायेंगे…
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