क्या दुआ करू मैं अपने दोस्तों के लिए…
ऐ खुदा बस यही दुआ है कि…
मेरे दोस्त कभी किसी दुआ के मोहताज न हो…
काँटों में रह कर भी हम जिन्दगी जी’ लेते हैं…
हर जख्म को अपने हाथों से सिल लेते हैं…
जिस दोस्त को कह दिया दोस्त का हाथ…
हम उस हाथ से जहर भी पी लेते हैं…
भरोसा रखो हमारी दोस्ती पर …
हम किसी का दिल दुखाया नहीं करते …
आप और आपका अंदाज हमें अच्छा लगा …
वरना हम किसी को दोस्त बनाया नहीं करते…
हमारी दोस्ती का रिश्ता कुछ इस तरह निभायेंगे…
कि तुम रोज खफा होना हम रोज मनायेंगे…
पर मेरे यार मेरे मनाने से मान जाना…
वरना ये भीगी पलकें लेकर हम कहाँ जायेंगे…
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