तन्हा सा था मैं इस दुनिया की भीड़ में…
सोचा कोई भी अपना नहीं तकदीर में…
जब दोस्ती की आपसे तो यूँ लगा कि…
कुछ तो खास था मेरे हाथ की लकीर में…
कहते हैं हर बात किसी को कही नहीं जाती…
अपनो को भी बताई नहीं जाती…
पर दोस्त तो दिल का आईना होता है…
और आईने से सूरत छुपाई नहीं जाती…
अपनी मुलाकात कुछ अधूरी सी लगी…
पास होकर भी दूरी सी लगी…
होठों पर हंसी आँखों में मजबूरी सी लगी…
जिंदगी में पहली बार किसी की दोस्ती जरुरी सी लगी…
आपकी दोस्ती की एक नजर चाहिए…
दिल है बेघर उसे एक घर चाहिए…
बस यूँ ही साथ चलते रहो ऐ दोस्त…
यह दोस्ती हमें उम्र भर चाहिए…
किस हद तक जाना है ये कौन जानता है…
किस मंजिल को पाना है ये कौन जानता है…
दोस्ती के दो पल जी भर के जी लो…
किस रोज बिछड़ जाना है ये कौन जानता है…
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