Short Story (लघु कहानी)
Title of Short Story : शिष्टता
writer : अनिता शरद झा
दिल्ली से मुम्बई जाने वाली ट्रेन की आर ए .सी सीट में बैठी कनिका मन ही मन दुआ कर रही थी कि काश दूसरे यात्री की ट्रेन छूट जाए ताकि उसे पूरी बर्थ मिल जाए। ये सोचते हुए उसने पैर फैला पूरे बर्थ पर कब्जा कर लिया लेकिन हर बार वह कहाँ होता जो आपने सोचा होता है।
अगले ही पल एक भारी भरकम आवाज सुनाई दी, “एक्सक्यूज मी मैम, आप मेरी सीट पर बैठी हैं ” कनिका कुढ़ते हुए चुपचाप अपनी सीट की ओर खिसक गई। उस शख्स ने अपनी सीट पर बैठते हुए हैरानी से कहा, ” तुम कनिका ही हो न , मैं आशीष, पहचाना नहीं मुझे”
अब हैरान होने की बारी कनिका की थी। आशीष के इस नये आकर्षक व्यक्तित्व को देख कनिका का मुंह खुला का खुला रह गया । कभी दुबले पतले साँवले से सीधे सादे तथाकथित गंवार आशीष के प्रणय निवेदन को उसने कैसे ठुकरा दिया था.! आज बरसों बाद कनिका और आशीष सामने सहयात्री अंजु और देव को सामने देख द्रवित हो अपनी छोटी सी भूल ईगो को ले अलग हुए आँखों की भाषा दोनों ने पढ़ ली शायद ईश्वर ने दुबारा मिलने ये परिस्थितियों निर्मित की देव ने बड़े प्यार से अंजू की और देखा और बर्थ पर चादर बिछाई।
अंजू अपने छः माह के बच्चें के लियें दूध बना कर मुँह लगाया । बच्चा ज़ोर से रोने लगा । पति देव की शालीनता उस समय धरी रह गई, जब उसने एक ज़ोर का तमाचा अपनी पत्नी अंजू के सुर्ख़ गाल पर बिना सोच समझे जड़ दिया “माँ हो ना हाथ में दूध डाल कर देखना चाहिये था ।कितना गरम है ?” अंजू क्या कहती, बच्चे के गले की लाकेट उसकी अपनी पहनी स्वेटर में फँस कर चुभ रही थी । दर्द से परेशान बच्चा चीख़ कर और ज़ोर से रोने लगा था । अंजु ने धीरज के साथ लाकेट स्वेटर से अलग किया । बच्चा दूध पी कर सो गया ।
अंजु अपलक आँसुओं के साथ खिड़की से बाहर देख रही थी !तभी सामने बैठी कनिका ने उसका हाथ अपने हाथ में ले कर कुछ कहना चाहा पर डबडबाईं आँखों ने मन की भाषा पढ़ ली। अनजाने रिश्ते भी अपने लगते है । जिसकी यादें जीवन में सुकून दे जाते है । यात्रा के दौरान सुबह के अभिवादन के साथ आशीष ने अपना अपना मंतव्य ज़ाहिर किया ।
आप की नींद पुरी नहीं हुई लगता है भाई सांब, देव ने कहा हाँ भाईसांब , आशीष ने कहा – बुरा ना माने तो एक बात कहूँ ? आप के एक झटकें की आवाज़ ने हम सब की नींद उड़ा दी, इतनी अशिष्टता अच्छी बात नहीं है थी बिना सोचे समझें ही ,आपने अपनी पत्नी अंजू पर वार कर दिया ।
शिष्टता तो आप की पत्नी ने दिखाईं ।सह यात्री आशीष को गलें लागते हुये कहा – यदि आप को मेरी बाते बुरी लगी तो माफ़ी चाहता हुँ । गले लगते ही देव ने कहा हमसफ़र साथ हो तो मंज़िल आसान । कनिका ने आशीष का था हाथ पकड़ अपनी गलती स्वीकार की कभी कभी अपने मय के आगे इंसान पराजित हो जाता है ।
Short Stories लघु कहानियाँ
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